राह-ए - “मंज़िल” कभी आसान नही होती
पत्थर सिर्फ पत्थर ही है, कोई चट्टान नही होती।।
पाना है मज़िल को तो, पंखों को पसारना होगा
बिना पंख फैलाये कभी भी कोई उड़ान नही होती।।
अपने सुस्त कदमों को राही अब धूप मे बढा आगे
ज़िंदगी की राहों मे, हर जगह छावँ नही है होती।।
आसमान को धरा से ताकने वाले परिंदों को समझाए
कौन?कि,यूँ ही बैठे बैठे आसमान मे उड़ान नही होती।।
परोस देती है जिंदगी ,थाली मे स्वाद बहुतेरे "जनाब"
पर याद रखो हर जगह "माँ" मेज़बांन नही होती।।
कोशिशों से जीत लो ,अब तो तुम मुकाम अपना
कोशिशों से मिली जीत कभी बेजुबान नही होती।।
Good. Keep it up
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंBhoot khubsurat poem ga
जवाब देंहटाएंVery nice mam
जवाब देंहटाएंVery nice lines mam👌👌
जवाब देंहटाएंOsm Mam
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