कुछ सबब मिलते हैं हमें
अपनी किताबों से.....!!
बंद किताबों मे कुछ अल्फाज़ तो होंगे
उस किताब के पन्ने मेरे हमराज़ तो होंगे
अब बस बेजान शब्द मिलते हैं हमें
अपनी किताबों से......!!
वो पलटते थे हर पन्ना पर कभी
कोई पन्ना पढ़ कर नही देखा
पर हम बेइंतहा प्यार करते हैं
अपनी किताबों से...!!
खुली किताब सा हो जाऊँ
ये हो नही सकता सब कुछ छुपा
के रख लूँ मैं बहुत ही खामोशी से
ये हुनर भी सीखा है मैंने
अपनी किताबों से......!!
गर्म सर्द हवाओं का कोई
जोर नही चलता, पन्ने खुद
ही बिखर जाते है ज़िंदगी की
पुरानी किताबों से......!!
हर शख्श शामिल है ख्वाइशों की
दुनियाँ मे, पर सबसे प्यार हो जाए
ऐसा कहीं नही मिलता, बस प्यार हो जाए
अपनी किताबों से.....!!
कुछ हरी हरी पत्तियाँ और कुछ
सूखे हुए गुलाब, तेरी यादों मे संभाले थे
मैंने, फीकी पड़ गई है उनकी छाप अब
अपनी किताबों मे.....!!
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