रोते क्यों हो

                   
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    एक बात बताओ, तुम इतना सब खोते क्यों हो? 

दुनियाँ जाग रही है सुनहरी धूप मे

तुम पाँव फैलाये सोते क्यों हो? 


सब घिस रहे है बेबाक हाथ की लकीरों को

तुम तक़दीर को हाथ मे थाम कर रोते क्यों हो? 


लहरें चमके सूरज सी, तूफ़ान का की नाम नही

सब तह तक डुबकी लगाते है, तुम किनारे पर बैठे क्यों हो? 


माना की दौर जंग का है ,पर मन तेरा अपंग सा है

बेवजह लाचारी पर रोते क्यों है? 


सब गिर गिर कर संभलते है यहाँ,अपनी मज़िल पाने को

तुम इतने आराम से लेते क्यों हो? 


जो दूर है वो पा नही सके ,ये कैसी नीति बनाई है

पर जो पास है उसको संभाल लो,यूहीं खोते क्यों हों? 


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