फुलवारी


कर्मो की फुलवारी मे 
कर्मो का लेखा है। 

पुष्प, पाप पुन्य के ही
इसमें उगते देखा है। 

बगिया मे खिलते मेरे 
सुंदर पुन्य के फूल
कहीं  पाप भी रहता है। 

उपवन सजा दिया कर्मो से
कर्म यहाँ किसने देखा है। 

गठरी पापों की भारी 
वजन उसमे भी रहता है। 

जीवन भर ढोया मैंने
अंत मे किसने देखा है। 

दिल का दर्द बहुत गहरा
मन खुद ही सहता है। 




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