आईना

Aaina Poem - Sarita Prajapati


आईना हो तुम मेरा

रोज़ मुझसे मेरी तरह ही मिलते हो...!! 


बेवजह महक जाता है तेरी खुशुबु से 

मेरा दामन, जब तुम इत्र सा महकते हो...!! 


इतराने की वजह कोई हमसे एक बार पूछे

सिर्फ तुम हो जो सीने मे दिल बनकर धड़कते हो...!! 


सिमट जाती हूँ मैं खुद अपनी बाहों मे

जब हवा बनकर तुम मुझको स्पर्श करते हो...!! 


निखर जाती है और भी स्याह रात मेरी

हमसाया बन कर जब तुम साथ मेरे चलते हो....!! 


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