नूर


 
तुझे सिर्फ सोचा मैंने तो चेहरे को "नूर" मिल गया

बे-अदब सी ज़िंदगी को अब तो शाहूर मिल गया...!! 

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पास से क्या देखू तुम्हें, मुकाबिल तुम्हारे होते ही

बेताब तरसती आँखों पर पर्दा सा जरूर मिल गया...!! 


भूल के सब ये शर्मो हया,जी चाहे तुझ मे सिमट जाए हम 

दुनियाँ की इन दीवारों मे, ये दस्तूर क्यों मिल गया ? ... 


कुछ वादे भी है तुझसे , कुछ कसमें निभाई है

तु मेरा है ,मैं जब सोचूँ, खुद को गुरुर मिल गया...!! 


तुमसे मिले जब हम ए- जान - ए - ज़िगर

जीने का सलीका आते ही आँखों मे सुरूर मिल गया..!! 

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