अनुभवों की क्यारी मे ,मैंने कुछ पौध लगाई हैं
कुछ खुद ही उग गई, कुछ की कलमें लगाई हैं...!!
बरसते मेघा को भी मना लिया हमने, की कभी
जम जम के,तो कभी थम थम के वो बरसो क्योंकि
मेरे "अनुभव" की डाल पर नई- नई कलियाँ आई हैं... !!
सींचता हूँ अपने " अनुभव "की क्यारी को मैं तहे दिल से
हटा देता हूँ वो सब खामियाँ जो बेवजह ही आई हैं...!!
तराशतें रहे हम खुद को, उम्र भर सलीके से जीने की लिए,
अब समझ आया की ,ए-ज़िंदगी तेरे सभी पन्नों मे,
" अनुभव" की कलम मे "तज़ुर्बों "की स्याही है.....!!
Vry nyc
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाई को बहुत ही शानदार आकृति देकर कविता के रूप में प्रस्तुत किया है । बहुत बाढ़िया !
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