इश्क़ नही करना मुझे, मैं सिर्फ इबादत चाहता हूँ
दर पर सर झुके मेरा,तेरे सज़दे की इजाज़त चाहता हूँ।
क्यों डूब जाऊँ? किसी के इश्क़ की गहराई मे
कुछ नही मिलता यँहा, बस दौर - ए - तन्हाई मे
कुछ फरमान तु भी सुना दे खुदा,
अब अपनी सोच पर "पाबंद" लगाना चाहता हूँ।
सोचती है रात और सोचते ये दिन भी हैं
बेवजह यूँही, वो मुझमें शामिल भी है
नही रह सकता तेरे "पाबंद" इश्क़ मे " मैं "
अब तेरी यादों से दूरियों की इजाज़त चाहता हूँ।
क्यों जकड़ते हो मेरे मन को इन यादों की बेडियों मे
तोड़ देगा ये सब बंधन एक रोज़ उड़ ही जायेगा
मन "परिंदा" है साहेब उड़ने का शौक रखता है
ऊँची उड़ान की चाहत पर , मैं कब पाबंद चाहता हूँ।
Khoobsurat
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