ठंडी छाँव

 

                      

ज़िंदगी मे सभी चीजें आसानी से मिल जाए, तो जीने का मज़ा नही आयेगा, परंतु सब आसानी से मिल जाए ऐसा ज्यादातर होता नही है,कुछ ही लोग ऐसा जीवन जीते है की बिना मेहनत की सबकुछ पा लेते है। जीवन चाहे जिस पड़ाव पर हो, पर हर वक़्त मेहनत और सब्र का सामान साथ लिए चलता है, और जिनके पास इन चुनिंदा सामानों की कमी रहती है वो कभी भी आगे नही बड़ पाते है। 

तान्या मेरी एक अच्छी  सहेली है अक्सर उसका और मेरा एक दूसरे क घर आना जाना लगा रहता है ,एक दिन मैं  उस से मिलने उसके घर गई ,उसके घर मैंने एक औरत को देखा जो किसी काम से उसके घर आई हुई थी। कुछ समय बाद  वो चली गई और हम दोनों बैठ कर  बातें  करने लगे तब मुझे पता चला  की वो औरत वहीँ पास की किसी फैक्ट्री मे  काम करती है,और उसके तीन बच्चे हैं और मेरी सहेली तान्या व्यवहार मे  बहुत अच्छी थी इसी कारण वह औरत उसके पास अपने बच्चों की पढ़ाई या किसी और काम की जानकारी लेने के लिए उसके पास आती रहती थी। तभी मुझे पता चला की उसका नाम है"सुषमा "है          

 अक्सर तान्या क घर आने जाने मे , मेरी मुलाकात  सुषमा से कभी कभी हो जाती थी ,तान्या  के पास सुषमा अपने पैसे भी जमा करा दिया करती थी  एक दिन मैंने देखा की   एक  10  -11 साल का बच्चा तान्या  के घर आया  , उसके हाथ की मुट्ठी बहुत कस कर बंधी थी,बहुत ही सादे से लिबास मे उस बच्चे को देखती रही  ,बिना बाजू की टीशर्ट और निक्कर, और साधारण से चप्पल पहने वो लड़का  बोला "आंटी जी  नमस्कार "मेरी  मम्मी की तबियत आज कुछ ठीक नहीं हैं इसीलिए उन्होंने मुझे आपके पास ये कुछ रूपए लेकर भेजा हैं", हाथ मे  दबा रखे उन रुपयों  को तान्या  की तरफ बढ़ाते हुए बोला  की " आंटी जी रूपए गिन  लीजिये तब ही मैं  जाऊंगा" उसकी आँखों की चमक और उसका आत्मविश्वास उसके व्यक्तित्व पर झलकता रहा था। 

तान्या ने उसके सामने ही पैसे गिन कर उसको बता दिया  और वो मुझे  भी नमस्कार कर के चला गया  तब मुझे पता चला की ये सुषमा का बेटा  "राघव" है। मुझे वो बच्चा अच्छा लगा , मैंने  तान्या से उसके बारे मे पुछा तो मुझे पता चला की वो मेरे घर क पास ही  के एक सरकारी स्कूल  आठवीं क्लास मे  पढता है    उसकी  दो  बड़ी बहन भी है जो उस से दो - चार साल बड़ी होगी। उसके पिता जी  भी कुछ ज्यादा पढ़े लिखे नहीं है वह  कपड़ों पर कढ़ाई करते है। तीनों  बहन भाई स्कूल जाते हैं  कुल मिला कर घर का खर्च ही मुश्किल से चल पाता होगा । 

घर मे कुछ भी आधुनिक सुख सुविधाएँ नही थी, बहुत ही साधारण सा जीवन व्यतीत करने वाला वो परिवार अपने आप मे ही बहुत खुश और संतुष्ट थे,  राघव का स्कूल मेरे घर  के  आस पास होने क कारण  अक्सर मुझे वो स्कूल से आते या जाते दिख जाया करता था  कभी देख कर  वो मुस्कुरा दिया करता था तो कभी निगाह  बचाकर निकल जाने की कोशिश भी करता था ,कभी कभी मैं  राघव को बुला भी लिया  करती थी , अब  राघव  महीने मे दो या तीन बार मेरे घर आ जाता था, क्योंकि उसके पिता जी को मशीन पर काम करने के लिए अख़बार की जरूरत होती थी इसीलिए वो मेरे घर से रद्दी के अख़बार लेने आता था,  मैंने उसको यूँही अखबार देना चाहा पर वो 10 -12  साल का बच्चा  बहुत ही ख़ुद्दार  था ,बहुत ही सलीके से वो पुराने अखबारों की गड्डी बनाता और उनको बांध कर  कबाड़ी की दुकान से तुलवा कर बताने आता की, रद्दी कितनी थी?, और उसके हिसाब से मुझे वो उस  रद्दी  के  पैसे दे जाता था  ....उसकी उम्र के हिसाब से ,उसका काम को करने का तरीका बहुत ही बेहतरीन था, बहुत कम शब्दों की इस्तेमाल से वह अपना काम बहुत आसानी से कर लेता था, जब वो रद्दी लेने आता था तो उसके पास एक साईकिल होती थी, पर वो उसके हिसाब से बड़ी हुआ करती थी, शायद वो किसी से साइकिल मांग कर रद्दी लेने आता हो।   

एक दिन अचानक से मेरा उसके घर जाना हुआ, तो मै यूहीं रुक कर उसकी मम्मी से बात करने लगी, बात करते करते मेरी निगाह उनके कमरे मे गई तो मैंने देखा की , राघव  घर के एक कोने मे खिड़की की पास बैठा पढ रहा था। 

उसने मुझे वहीं से देखा और सर झुकाकर नमस्कार करके अपनी पढाई मे लग गया, बाहर से आने वाला शोर, मशीन की आवाज़े पड़ोस मे बजते हुए गाने, उसकी पढाई पर कोई बाधा नही डाल रहे थे। 

घर मे चारों तरफ कपड़े ही कपड़े पड़े हुए थे क्योंकि उसकी मम्मी  शायद   घर  पर कुछ सिलाई का काम भी करती होंगी  घर  मे सुख सुविधाओं की नाम पर ऐसा कुछ नही था परंतु सुकून बहुत था राघव ने एक लोहे की बाल्टी की ऊपर एक लकड़ी का पटरा रख कर अपना स्टडी टेबल बनाया हुआ था जिस पर किताबें रख कर पढ़  रहा था, मैं अपने मन मे संतोष लेकर वहाँ से वापिस आई, और सोचती रही की बिना सुख सुविधाओं के  भी जीवन अच्छा चल जाता है अगर मन मे शांति हो तो। 

"राघव" की सादगी मेरे दिल मे  घर कर  गई थी , मैं  अक्सर तान्या से भी उसके बारे मे  पूछ लिए करती  थी  बारे मे पूछ लेती थी, तब मुझे पता चला की अब वो बारहवीं क्लास मे है और UPSC  की तैयारी करना  चाह  रहा है, ये बात सुनकर मेरी आँखों की सामने वो ही छोटा सा बच्चा जो रद्दी लेने आता था, वही घूमने लगा, की उसने कितनी शिद्दत से अपनी पढाई को पूरा किया  और उसके साथ  अपना लक्ष्य  भी तय  कर   लिया है, मुझे ये सुन कर बहुत खुशी थी। 

कुछ दिनों बाद मुझे  तान्या से पता चला की  "राघव " ने किसी कोचिंग क्लास का टेस्ट दिया था जिसमे उसको  UPSC  की तैयारी के  लिए फ्री कोचिंग मिलेगी, क्योंकि उसने स्कॉलरशिप ली थी, ये तो अच्छी बात थी अब वो और भी मन लगा कर पढ़  भी रहा था क्योंकि उसको अपना सपना  पूरा करना था,  उसको पता था की बिना स्कालरशिप के उसके पिता जी इतना खर्च नही उठा पाएंगे, और उन दिनों उसकी दोनों बहनों   ने भी घर के हालात को देखते हुए ट्यूशन पढाना शुरू कर दिया था। 

कभी कभी मेरी मुलाकात उसकी बहन से भी हो जाती थी, एक दिन "गीता"(राघव  की बहन)  मुझसे बोली की " भाई को बहुत गर्मी लगती है, ठीक से पढ़  नही पा रहा है, सोच रही हूँ की ट्यूशन  पढ़ा  कर जोड़े हुए पैसों से एक कूलर ले आऊँ" मैने भी उसको हाँ बोल दिया, अपनी छोटी छोटी खुशियोँ को बाँटने पर जो ख़ुशी मिलती है वो मैं  ख़ुशी गीता क  चेहरे पर देख पा रही थी,राघव  बहुत ही मेहनती ,और पढ़ाई को लगन  से करने वाला बच्चा था इसीलिए उसके घर क सभी लोग  उसके साथ जी जान से जुटे हुए थे क्योंकि  राघव की मेहनत अब रंग लाने वाली थी  । 

फिर बारहवी  क्लास के पेपर होने के बाद  वह  कॉलेज जाने लगा  और ये तीन साल की मेहनत  और पढ़ाई  का खर्च उसको परेशान कर  रहा था ,परन्तु परिवार  के सभी सदस्य एक दूसरे के मन की बात को समझते थे ,इसीलिए सभी ने उसको समझाया की वो सिर्फ अपनी पढाई पर  ध्यान दे बाकी सब कुछ घर क बाकि लोग देख लेंगे ,धीरे धीरे वक़्त गुजरता चला गया और इसी मुश्किलों क दौर से गुजरते हुए ग्रेजुएशन  की डिग्री भी हासिल कर  ली ।  

अब     UPSC     पेपर होना बाकी था, जिसकी तैयारी मे राघव  बहुत मेहनत से  लगा हुआ था, मैं भी दिल से चाहती थी की उसका   UPSC (प्री)   का पेपर  क्लियर  हो    जाए, और सच कहूँ तो अब गीता के  कंधों पर कुछ भार था, पिताजी का काम थोड़ा कम होने की कारण, आर्थिक स्थिति ठीक नही थी, और दूसरी तरफ राघव की फीस भी भरनी होती है, घर बहुत मुश्किल हालातों से गुजर रहा था पर राघव को इन सब बातों की खबर तक नही दी जाती थी, ताकि उसकी पढाई मे कोई विघ्न न आये, तभी गीता  ने भी कॉलेज करते करते नौकरी करना शुरू कर दी, भाई  और बहन की पढाई के कारण कुछ अच्छा कोर्स  भी नहीं कर  पाई।  

और  फिर वो समय आ ही गया जब पेपर हुआ, उसने बहुत ही आत्मविश्वास के साथ पेपर दिया, और जब उसका रिजल्ट आया तो   उसको उसकी मेहनत  का फल मिला, अगले सत्र मे  ही उसने UPSC (मैन्स) भी  निकाल लिया उसके बाद इंटरव्यू मे भी उसका प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा।  अब घर के  सभी लोगो को   दुनियां  की तमाम खुशियाँ  मिल  गई क्योंकि राघव अब एक अफसर बन चुका था। माता  पिता क सारे सपने भी पूरे हुए  , एक अच्छा घर ,सभी आधुनिक सुख सुविधाएँ   जो पहले नहीं थी परन्तु अब सभी साधनो का सुख था। 

बस मेरा मन अब ये ही सोचता था की राघव  कहीं न कहीं गीता  और उसकी  बहन का बलिदान भी समझेगा, क्योंकि सिर्फ भाई की कारण ही गीता ने अपने सभी अधिकार खो दिये, उसको पढाने मे कहीं न कहीं उसका भी   योगदान है, ये जानते हुए की उसको खुद ही दूसरे घर  शादी  करके जाना है और लड़की का आत्मनिर्भर होना जरूरी है तब भी उसने कभी अपने पिताजी से अपने ऊपर खर्च करने के लिए नही कहा, और हमेशा एक लड़के की तरह अपने पिताजी की साथ खड़ी रही, भाई बहन मे प्यार भी बहुत है, ये प्यार आगे तक बना रहे। 

कुछ दिनों  बाद मुझे तान्या से पता चला  की गीता क लिए सुयोग्य वर ढूंढ कर  राघव  ने उसकी शादी तय  कर  दी है  और छोटी बहन  ग्रेजुएशन की  आखिरी सत्र की परीक्षा दे रही है। 

इन सब बातों को देख कर समझ कर ये ही सोचती हूँ की किसी भी अच्छे मुकाम पर पहुँचने के लिए ,काबिल बनने के लिए बच्चे का मेहनती   होना ही बहुत जरूरी है, हम लोग अपने बच्चों की आरामदायक सभी सुख सुविधाओं को देकर उनको जीवन की वास्तविकता से दूर कर देते हैं, बच्चों की जरूरत जाने बिना ही उनको दुनियाँ भर की सारी चीज़ें बिना कहे ही लाकर दे देते हैं सिर्फ ये सोच कर की हमारी परवरिश मे कोई कमी न रह जाए, पर ऐसे परिवार से मिलकर मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला,की आपकी परवरिश मे संस्कार शामिल होने चाहिए, जिस से बच्चा आगे बढे, आधुनिक सुविधाओं से ज्यादा जरूरी है परिवार मे एक दूसरे को समझना, प्यार करना, और माता पिता का समय समय पर अपने बच्चों की पढ़ाई की बारे मे पूछते रहना, आजकल के माता पिता बच्चों को सभी सुख सुविधाएँ देकर ये समझ लेते है की हम अच्छी देखभाल कर रहे है, पर शायद वो ये भूल जाते हैं की "प्यार और विश्वास" नाम का बीज भी बोना होता है,और उसको समय पर देखभाल की भी जरूरत होती है, ताकि वो अच्छे तरह से बढ़ सके,जो घर की आँगन मे जीवन भर छाया, मीठे फल और सुकून भी देता है। और जब हम इन पौधों को सींच लेते है तो फिर हमको मिलती है उस विशाल तरुवर की "ठंडी छाँव"। 









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