तिरंगा



कुछ कहे या अनकहे शब्द 

वीरों के दिल के अरमाँ सारे

दिल की कहानी के गए । 




                       तिरंगे मे लिपटे शव,जब घर की

 देहलीज़ पर पहुँचे तो खुद ही 

पनी कहानी के गए


कुछ जुनून लिए,वो बढ़ते रहे आगे 

दुश्मन के आगे डटते रहे वो, 

पर जाते जाते आँखों मे पानी दे गए। 


हिम्मत से जीत ली जंग देश की  

कुर्बानी ही सब बस बची शेष थी

भारत माता को अपनी ज़िंदगानी दे गए। 


माथे की बिंदिया, कुंकुम, काजल, 

हाथों मे सजती थी जिनके नाम की मेहंदी

उन हाथों मे खुशबु सुहानी दे गए


साथ चलने का वादा कर के लौट गए वो 

देश की मिट्टी को चूमा लबों से, 

उसी को ग़ज़ल सुहानी कह गए। 


नही दे पाए खुशियाँ अपने आँगन मे, 

वीर बहादुर वो सैनिक , कतरा कतरा

बुँदे खून की, देश को कुर्बानी दे गए। 



मिट्टी से जुड़ कर ही होली दिवाली मन जाती है

सीमा के पहरों मे कभी ,घर की याद सताती थी

लौट कर ऐसे आये बस ,कन्धों पर ज़िम्मेदारी दे गए। 


भीगा सा आँचल है माँ का और 

पथराई सी आँखें है, कैसे जिये इस दर्द को लेकर

जो वो दर्द  से रिश्ता रूहानी दे गए। 



बाँध सर पर कफ़न अपने चले दीवाने 

आज़ादी के ,क्यों भूल जाते है हम उन वीरों को

जो देश को अपनी जवानी दे गए। 


जब तक जान रही लड़ते रहे दुश्मन से

जान गवां कर सींचा हिंदुस्तान है

नई कोपलों को भी देशभक्ति की रवानी दे गए


चले गए जाने वाले, आगे भी जाते जायेंगे

कब तक हम कुछ मौकों पर ही 

उनको याद कर जायेंगे। 


जश्न मनाते है दो दिन ,फिर भूल हम जाते है

सीमा पर रह रहे वीरों से ही हम चैन की नींद सो पाते है 

इनका सम्मान हम क्यों भूल जायेंगे। 




CONVERSATION

3 Comments:

COMMENTS