कभी कभी अनजाने मे या जानबूझ कर किसी को कहें हुए अपशब्द हमे अंदर ही अंदर कचोटते रहते हैं की काश हमने ऐसा नहीं कहा होता। परन्तु कहते वक़्त इस बात का जरा ध्यान नहीं रहता की ,हम जो बोल रहे हैं वो शब्द कभी किसी क अंतर्मन को दुःख भी पहुंचा सकते हैं।
हमारे गाँव मे एक सभ्य परिवार रहता था ,पति, पत्नी और उनके दो बच्चें राहुल और मनीष , जहाँ राहुल बहुत ही शांत स्वाभाव का था दूसरी तरफ मनीष बहुत ही गुस्सैल लड़का था। ,हर रोज़ किसी न किसी बच्चें के माता पिता, मिश्रा जी के घर उनके बेटे मनीष की शिकायत लेकर आया करते थे। समय के साथ मुझे पता चला की मिश्रा जी गाँव के डाक विभाग मे कार्यरत हैं। और उनकी पत्नी घर संभालती हैं मनीष उनका बड़ा बेटा है और राहुल छोटा बेटा है दोनों ही बच्चे स्कूल जाते है।
मिश्रा जी आसपास क लोगो से ज्यादा बात नहीं किया करते थे परन्तु डाक विभाग से सम्बंधित कोई भी कार्य मे अगर गाँव क लोगो को मदद की जरूरत होती तो वह लोगो की मदद कर देते थे। मेरा बेटा बंगलौर मे इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा है मैं एक हफ्ते मे दो बार अपने बेटे को पत्र लिखा करता था , इसी कारण मेरा पोस्ट ऑफिस जाना होता रहता था , इसी तरह से मुलाकातें मिश्रा जी से बढ़ती चली गई , अब मेरा पोस्ट ऑफिस जाना बंद सा हो गया था क्योंकि दो तीन दिन छोड़ कर पोस्ट ऑफिस जाते वक़्त मिश्रा जी आवाज़ लगा कर पूछ ही लेते थे की " अरे शर्मा जी कहाँ हो ? हमारे लायक़ कोई सेवा हो तो बताये ,तभी मैं उनके पास आकर अपने बेटे क लिए लिखा हुआ पत्र उनको देता , और वो मुस्कुराते हुए पत्र लेकर चले जाते।
मेरी धर्मपत्नी और मिश्रा जी की पत्नी की आपस मे अच्छी दोस्ती हो गई ,घर क बच्चे स्कूल चले जाते ,हम लोग ऑफिस चले जाते ,और ये दोनों महिलाएं घर मे अचार, पापड़ और तरह तरह की मिठाई तथा व्यंजन बनाती , इस तरह से एक दूसरे क घर खाने पीने की चीज़ों का भी आदान प्रदान होने लगा था। मेरे घर में हम दोनों पति पत्नी ही रहते थे हमारा एक ही बेटा है जो बंगलौर मे रहता था।
बहुत दिनों से पड़ोस मे रहते हुए मैं मनीष और राहुल को अच्छी तरह से जान गया था ,परन्तु मिश्रा जी ने कभी भी मुझसे अपने बच्चों के विषय में कोई भी बात नहीं की ,मनीष ने अभी बारवहीं की परीक्षा पास की थी , अब उसका कॉलेज मे दाखिला होना था,परन्तु बारव्ही कक्षा मे बहुत कम अंक से सफलता प्राप्त करने पर मनीष खुश तो बहुत था, लेकिन गलत संगत मे पड़ जाने के कारण उसका मन अब पढाई मे बिलकुल नहीं था।
आजकल मिश्रा जी भी बहुत अनमने से हो गए थे , कभी तो अच्छी तरह से बात करते और कभी देखकर मुस्कुरा कर चले जाते , और कुछ ऐसा ही स्वभाव उनकी पत्नी मे भी नज़र आया , आज कल हमारी श्रीमती जी और उनका दोस्ताना भी कम सा लग रहा था। लेकिन मैं सोचकर परेशान था की , कुछ तो बात जरूर है , कोई गलतफहमी तो नहीं हो गई हम दोनों परिवारों के बीच ?
अब मुझे इंतज़ार था की मिश्रा जी पत्र लेने जरूर आएंगे , तो पूछ लूँगा ,परन्तु उस दिन वो नहीं आये , मै खुद ही पोस्ट ऑफिस गया और डाक डाल कर आने लगा ,मुझे देख कर मिश्रा जी थोड़ा संकुचाये और बोले, "शर्मा जी बुरा नहीं मानियेगा आज जरा जल्दी मे था , इसीलिए आ नहीं पाया ,शाम को वक़्त निकालिएगा चाय पर मिलते हैं। "
मैं भी मुस्कुराता हुआ , शाम को साथ बैठने की मंजूरी देते हुए घर को लौट आया , शाम को ठीक 6:30 बजे मेर घर की घंटी बजती हैं और साथ मे एक तेज़ आवाज़ आती हैं , "शर्मा जी घर पर हैं क्या ? " मैंने उनका स्वागत किया और हम दोनों एक साथ बैठ कर बातें करने लगे ,बातें करते करते वह मेरे बेटे की पढाई के बारे मे पूछते रहे तभी मैंने उनसे उनके दोनों बच्चों के बारे मे पूछा ,तब मुझे पता चला की राहुल दसवीं कक्षा मे आया है और मनीष ने बारहवीं पास की है और गलत संगत के कारण पढ़ने का मन नहीं है , हर वक़्त हर किसी को भला बुरा बोलता रहता है ,बोलने से पहले सोचता नहीं है की किसको क्या बोलना है ? दो दिन पहले तो उसने हद ही कर दी, अपने पिता जी से बहुत बहस की और खूब सवाल जवाब किये और जब मिश्रा जी ने उसको आगे पढ़ने के बोला तो उसने एकदम साफ़ मन कर दिया। ये सभी बातें मुझे मिश्रा जी ने ही बताई ,मैं उनका दुःख समझ रहा था की माता पिता के देखे हुए सपने किस तरह से बच्चे अपनी न समझी मे तोड़ देते हैं।
बात करते करते उन्होंने बताया की "बिना सोचे समझे बोल देने के बाद जब मनीष को अपने बोले हुए शब्दों पर पछतावा होता है तो वो कुछ समय बाद वह माफ़ी भी मांग लेता है,हर बार गलती की माफ़ी मुमकिन नहीं हैं शर्मा जी, मैं तो पिता हूँ हर बात सुन लूँगा और हर गलती पर माफ़ भी कर दूंगा परन्तु ,व्यावहारिक जीवन मे इन सब बातों का कोई औचित्य नहीं है ,हर बार गलती की माफ़ी नहीं होती। "
इतना कहते कहते उनका गला रुंध सा गया ,और आँखों मे पानी था जिसे वो भरपूर कोशिश कर के रोकना चाह रहे थे, टेबल पर रखी चाय ठंडी हो चुकी थी , मैंने चाय की तरफ इशारा करते हुए कहा, " चाय लीजिये " उनके बातचीत करने के ढंग से ऐसा लगा जैसे वह अपने बच्चे की बदतमीज़ी से परेशान हैं और मुझसे अपनी बात कह कर अपने मन का बोझ हल्का कर रहे हैं , तभी मैंने भी उनको दिलासा दी की आप चिंता न करे , बच्चे मन के चंचल होते है कभी कभी उम्र क साथ बहक जाते है , उनको सही दिशा दिखाना हमारा फ़र्ज़ होता है।
अगले ही दिन मैंने जानबूझ कर घर का कुछ सामान मांगने क बहाने से मनीष को अपने घर बुलाया, मनीष जान चुका था की , उसके पिता जी कल मेरे घर आये थे ,शायद इसी कारण वो मुझ से कतरा रहा था ,और मेरे काम को मना कर के चला गया , कुछ देर तक मैं सोचता रहा की" सचमुच बहुत ही बद्तमीज़ बच्चा है ,अभी मैं अपनी सोच से निकल भी नहीं पाया था की मनीष दुबारा मेरे पास लौटा और बोला, "बोलिये अंकल जी आपको क्या मंगवाना है ,मैं ला देता हूँ ,क्षमा मांगता हूँ ,मुझे आपसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।" ,तभी मैंने उसकी तरफ प्यार से देखा , और मैंने उसको एक थैला दिया जिसमे पंख भरे हुए थे और उसको बोलै की "बेटा गाँव के चौराहें पर ये सब पंख बिखेर आओ।", उसने मेरी बात की हामी भरते हुए ,मेरे हाथ से वो थैला लेकर चला गया ,और कुछ समय बाद वह वापस लौटा और वो खाली थैला मुझे लौटने लगा ,तभी मैंने उसको बोला, "मनीष मुझे क्षमा करना वो पंख मुझे वापस चाहिए ,तुम वो वापिस ले आओ " ,मनीष मेरी तरफ गुस्से की निगाहों से देखते हुए वापस गया और कुछ समय बाद लौटा तो बहुत मायूस था।
" बोला अंकल जी क्षमा कीजियेगा मैंने बहुत कोशिश की उन पंखों को समेटने की पर वो सभी पंख हवा से इधर उधर उड़ गए ,जिस कारण मैं उन पंखो को दोबारा समेटकर थैले मे नहीं ला सका " तभी मैंने उसको प्यार से अपने पास बैठाया और कहा, "मनीष जो पंख तुम खुद बिखेर कर आये और दोबारा वापस लाने मे तुम असमर्थ रहे ,ठीक उसी तरह बिना सोचे समझे बोले हुए शब्द जब किसी के दिल को भेद देते हैं, तो उसकी पीड़ा को हम कम नहीं कर सकते और न ही उन कहे हुए शब्दों को वापस ले सकते हैं। पंख हलके थे तुम तब भी वापस न ला सके , शब्दों का वजन तो वैसे भी भारी ही होता है इसीलिए उनको सही से उपयोग करो, हर बार गलत बोल कर माफ़ी मांग लेने से माफ़ी नहीं मिल सकती है, इसीलिए अपने शब्दों का सही चुनाव कर के सही ढंग से बोलना चाहिए। " मेरी इन सब बातों को वो ध्यान से सुन रहा था। उसको देख कर लग रहा था की वह अपनी सभी गलतियों को याद कर रहा है उसकी आँखों से झर झर आँसू बहने लगे ,अब उसको अपनी गलती का पछतावा था।
दो दिन बाद जब मिश्रा जी मिले तो काफी सुकून था उनके चेहरे पर ,मुझे देख कर मुस्कुराये और बोले "आज शाम को वक़्त निकालिएगा शाम की चाय पर मिलते है पर आज की चाय मेरे घर के आँगन मे बैठ कर पीयेंगे। "
मैं भी मुस्कुराता हुआ ये ही सोच रहा था की आँगन मे लगाए हुए पौधों को जब हम सही से सींच लेते हैं तो उसकी छाँव मे बैठने की ख़ुशी अलग ही होती है और खिलखिलाता आँगन भी अच्छा लगता है ....!!
Osm Mam
जवाब देंहटाएंVery nice mam ❤️👌🏻💯
हटाएंVery nice mam ❤️👌🏻💯
जवाब देंहटाएंआप सभी का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंGood bhabi ji
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