वो उम्र चालीस की

                       
वो उम्र चालीस की

बड़ी लगी मतवाली सी

ढूंढती हूँ खुद को आईने

मे, ये सरिता नही अब वो

पहले वाली सी । 


बीस के पास नही हूँ मैं और

साठ समझ मे नही आता

मन बच्चे सा मचलता है

प्रश्न फिर ये उठता है की 

उम्र नही ये पहले वाली सी। 


बड़े हो गए बच्चे, और बच्चों की 

दुनियाँ भी बड़ी अज़ब निराली है

माँ को ढूँढते थे वो घर मे, अब 

माँ घर मे है खाली सी

उम्र नही ये पहले वाली सी। 


जो रिश्ता खूब चहकता था 

प्यार बहुत मन मे पलता था

बिन कहे समझ लेते थे हर बात

आज सब बात वो कहने वाली सी

उम्र नही ये पहले वाली सी। 


ना सजना सँवारना, ना मन

की हिलोरें, ना होठों की लाली 

ना काजल की कोरें,अब बालों की

कई तारें यहाँ चांदी वाली सी

उम्र नही ये पहले वाली सी। 


दौड़ कर चलना,झपट,लपक कर

पकड़ लेना, हर काम मे होता था 

हरदम अव्वल रहना ,अब गति हो

 गई मेरी कुछ धीमी वाली सी

उम्र नही ये पहले वाली सी। 


मस्त हवायों के झोंके, जो मन 

को छू ही जाते थे, सावन की पहली

बारिश मे कैसे भीग ही जाते थे 

अब कहाँ वो बारिश सावन वाली सी

उम्र नही ये पहले वाली सी। 


सचमुच ये उम्र चालीस की बड़ी

ज़िम्मेदारी को करीब लाती है

खुद को भूल कर, अपनों मे रम

जाती है, कैसी खड़ी है चुप सी

उम्र नही ये पहले वाली सी। 


सुंदर सजीली बन कर मैं

आईना निहारूँगी, चिड़ियाँ सी

बन कर आँगन मे चहक ही जाऊंगी, 

बच्चों को परोस दूँगी, थाली प्यार वाली सी

कौन कहता है, उम्र नही ये पहले वाली सी? 


अव्वल नही भी आये तो क्या

दूसरा स्थान ले लेंगे,धीरे धीरे ही चलेंगे

पर विश्राम नही लेंगे,जीतअपनी भी आली सी

कौन कहता है, उम्र नही ये पहले वाली सी? 


हवा के झोंको मे हम यूँही मस्त हो जायेंगे

होठों पर जो आये गीत वो हम गुनगुनायेगे

भीगेगा तन मन मेरा ,अब हर बार बारिश मे

चाहे बारिश हो, सावन वाली सी

कौन कहता है,उम्र नही ये पहले वाली सी? 

सरिता प्रजापति


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