बड़ा बेचैन है ये दिल, इसे समझाऊँ कैसे
बंद है तेरे दिल के दरवाज़े मै आऊँ कैसे?
परिंदे सा उड़ता है ये मन,यूहीं आसमान मे
जो तुझ तक पहुँच जाऊँ,पर उड़ पाऊँ कैसे?
पंख जख्मी है मेरे, पर हौसला कम नही मेरा
एक आसमां दे मुझे, फिर देख उड़ जाऊँ कैसे
अश्कों से रिश्ता, और तुम्हें पाने की चाहत है
आँखों मे समंदर है, उसे रोक पाऊँ कैसे?
रिश्तों के मोह के धागे, जो तुझे मुझसे बांधे
इस उलझी उलझी गिरह को सुलझाऊँ कैसे?
कुछ अनकही सी बातें, कुछ अनसुनी बातें
बिन कहे, बिन सुने, तुझे समझाऊँ कैसे?
तु दिन का उजाला और मैं रात काली सी
दोनों मिले तो शाम बने, वो शाम बनाऊँ कैसे?
खाली राहों पर चल रहे है कदम मेरे तुझे पाने को
एक बार देख मुझे, और ये बता तेरा पता पाऊँ कैसे?
तुझसे मिल जाऊँ कैसे, बता मिल पाऊँ कैसे?
🥺❣️
जवाब देंहटाएं❤️❤️����
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंNice poem ��☺️
जवाब देंहटाएं👌👌
जवाब देंहटाएंAwsome
जवाब देंहटाएं