सूरज की दमके लाली सी
ये गर्मी बड़ी निराली सी
मन को भाये ककड़ी खीरा
तरबूज़ खरबूजा बड़ा रसीला
सब्जी हमको ऐसी लागे जैसे
बहुत ही नख़रे वाली सी।
ये गर्मी बड़ी निराली सी
फलों के राजा आम भी तो
बहुत ज्यादा इतराते हैं
जी भर खाये आम भी हम
आम पन्ना भी पी जाते हैं
और मस्त आम लस्सी भी
बड़िया वाली सी।
ये गर्मी बड़ी निराली सी
लू के गर्म थपेड़ों ने हमको
तो झुलसा डाला,
बेल का शरबत, निंबू की शिकंजी
छाछ मे जीरा हमने है डाला
मन भाती है वो चुस्की रंग वाली सी
ये गर्मी बड़ी निराली सी।
ठंडी हवा और ठंडा पानी,
मन को बहुत ही भाता है
मिट्टी की सौंधी सी खुशबू से
याद आये कुल्फी मटका वाली सी
ये गर्मी बड़ी निराली सी।
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