बहती हवा




 "बहती हवा" का एक मस्त सा झोंका

एक बादल का टुकडा कहीं से ले आया

अम्बर पर यूँहीं नज़रे हमारी बंध गई

बरसेंगे या यूँही गरज के रह जायेंगे...!! 


कुछ मन भीगे, कुछ तन भीगे

रोम रोम और अंग अंग भीगे

बरसों मेघा झूम झूम  धरा पर

हम "बहती हवा" मे सिमट जायेंगे...!! 


प्यासी धरती मचल रही पल पल

मन की तपन बुझाने को

तड़प रही है कब से बाहें 

कैसे तुमको गले लगायेंगे...? 


छू जाती है ये "बहती हवा" तुम्हें

जुर्म बहुत बार बार करती है

इश्क़ कर लिया तुमसे , हमने

अब ये गुनाह कैसे छिपायेंगे...? 


वाक़िफ़ तेरी वफ़ा से हूँ मैं

अंजान तु भी नही मेरी आरज़ू से

एक रोज़ मिल मुझसे आकर

फिर दिल की तुझे सुनायेंगे....!! 

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