कदम




 फ़ासले अगर दिल मे हो तो "कदम"

बढाने से भी क्या होगा।


दूरियाँ मिटना जानती है दिल से

पर जब तुम खुद ही न चाहो तो क्या होगा। 


भोर होने पर लालिमा लिए उगता है सूरज

तुम खुद को जगा लो तो भला होगा। 



मन तो भीग जाता है दुख की परछाई से

खुद को सुखो से मिला दो तो अच्छा होगा। 


बढ़ती दूरियों को कदमों से नापना होगा

दिल से दिल को मिला लो तो अच्छा होगा। 


सुस्त से कदमों को कभी राह-ए-मंज़िल नही मिलती

कदम जब पकड़े रफ़्तार तो, उसमे बहुत मज़ा होगा। 


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