काँच

 



क्यों मेरे दिल को तुम "काँच "कह गए

एक दर्द की आहट थी

पर सब ख्वाब ढह गए...!! 


एक  टुकडा जो ठहरा था 

वो मेरे दिल को चुभ गया

आँखे चुप रही लेकिन सैलाव बह गए...!! 


क्या खूब जमाई थी तुमने भी 

महफ़िल यारों की, 

मैं चुप सी बैठी थी, तुम बेहिसाब कह गए...!! 


बड़ा दर्द सा होता है 

प्यार मे टूट जाने मे

तुम महज इसे सिर्फ दरार कह गए....!! 


अनकहे से शब्द मेरे 

तुमको छूना चाहते थे

कुछ कह नही पाई बस दिल मे रह गए....!! 


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