" माँ "

 

Sparsh Poetry

सुंदर सपनों जैसी माँ,बंद पलकों में बुनती ख्वाब नये 

और मीठी लोरी जैसी माँ,

आंचल से मुझ को ढक लेती है वो आकाश

 के बादल जैसी माँ,

छूकर मेरा दर्द जो ले ले तितली के 

पंखों जैसी माँ

 काँटों में भी गुलाब सी खिलती वो 

बगिया उपवन जैसी माँ, 

तन मन जब घायल हो मेरा तो 

प्यार के मरहम जैसी माँ,

हर पल मेरी नजर उतारे नून राई भी मुझ पर वारे

 काजल की कोरों जैसी माँ,

सारी खुशियाँ हमको देती हमारे सारे दुख हर लेती 

अपने लिए कब जीती माँ, 

शब्दों के वह अर्थ बन जाती एहसासों में है वो घुल जाती,

किताब के पन्नो जैसी माँ, 

इंद्रधनुष के सपनों को मेरे कभी न गिरने देती है 

बड़ा सा आकाश देती माँ,

जब गिर जाऊं झट से उठाती उंगली पकड़कर चलना सिखाती,

 कदमों पर हथेली रखती माँ,

धूप की सुनहरी किरणों वाली और मधुर

 चाँदनी जैसी माँ,

स्वाद बहुत से देखो उनमे कभी खट्टी कभी मीठी

 कभी नमकीन जैसी माँ,

आंगन में लगे नीम की छाया,

मीठी निबोरी जैसी माँ, 

अंतर्मन में सपने रखती मेरे पंखों में रंग भरती 

ऊंची उड़ानों जैसी माँ,

काम की गठरी कांधे रखकर 

कभी  "उफ्फ" न कहती माँ,

 चिंता मेरी हर पल हरती ,सागर को गागर में भरती 

पावन गंगा जैसी माँ, 

 ना कोई उमंग है ना कोई तरंग मेरी ही 

दुनियाँ में जीती माँ, 

अनगिन है उपकार तुम्हारे कैसे चुका पाएंगे हम ,

धरती पर बनी मेरी पहचान सी माँ, 

बेटी की सखी बन जाती, बेटे से वो लाड़ लडाती

 हमजोली सी लागे माँ, 

न तेरी ज्यादा न मेरी कम है, माँ से ही तो इस दुनियाँ मे हम है,

 तुझसे तुलना कैसी माँ, 

हर जन्म मे तुझको माँगू तेरे हर सपने सजा

 दूँ, रब की दुआओं जैसी माँ।। 

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